प्यार, इम्तेहान, दर्द, वफाई दिया उसे पर कुछ ख़ास न दे सका,
ये तो होना ही था मेरे साथ कि मैं उसे विशवास न दे सका,
मुझसे डरना तो फितरत है उसकी, मुझसे छुपाना भी आदत हो गयी,
निगाहों को बर्ग्लाना ही कोशिस उसकी, मासूम होना एक इबादत हो गयी,
उसपे नफरत की चिंगारी गिरना, कि एक राज़ का खुलना बाकी है,
चाहता नहीं किसी से गुफ्तुगू करना, पर उससे जाने क्यों हाँ कि है ,
खुद ब खुद दूर होजाऊंगा इसका इंतज़ार वो करेगी ऐसे,
मैं हो जाऊंगा दूर उससे, उसको दूर कर पाउँगा कैसे,
यादों के बहाने रह जायेंगे, हमसे गिले- शिकवे रह जायेंगे,
मेरी नजरो के बादल लहरा कर तुझे अलविदा कह जायेंगे,
देख लेना तेरी छुपाने की आदत एक ख़ामोशी बन जायेगी,
महफ़िलो में रह कर भी तुझे तन्हाई सताएगी,
क्यूँ नहीं कह देती की तुझे मुहब्बत है किसी और से,
एक मजनू बच जाएगा, रुसवाई के उस दौर से,
मेरा इम्तिहान बस मेरी उस मंजिल तक लेजायेगा,
रब गवाही देगा, मेरा जिस्म बा- इज्ज़त-बरी हो जायेगा,
तेरी उस भूल को, कोई सज़ा का सितम न हो,
दिल पे मेरे खंजर की कलम न हो ,
तेरी एक आदत कहीं ज़माने का दस्तूर न हो जाए,
सॊच ले कभी कहीं तुझे भी किसीका इंतज़ार न हो जाए,
वो चला जाए फितरत में तेरे उस गुनाह के,
और तनहा कर दे तुझे बस उस सज़ा के,
वरुण पंवार
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