शीत लहर नहीं ये हत्यारन है, इसको भी सज़ा ऐसा मनोरथ हो,
त्राहि - त्राहि देहधारी पुकारें मृत्यु फल में भी संशोधन हो ,
कीट - पतंगे दफा हुए सब, खग - विहग की भरमार कहाँ,
खिड़की आँखें मूंदें बेठी, शीत लहर की मार यहाँ,
कोहरे की भयानक चादर, सूर्य देव ईद का चाँद हुआ,
आँगन, सड़क, कचहरी, पथ पर अग्नि देव का आह्वान हुआ,
एक शख्स प्लेटफार्म पर चिल्लाता, पागलों सी वो हरकत उसकी,
एक गुदगुदाती गर्मी बस वो, बिलकती- सिसकती बिटिया उसकी,
कोई कम्बल ओढ़े नाक दिखाए, कोई पास खड़ा और मरता जाए,
चाहत बस पल भर की नरमी, एक छोर मुझे और मिलजाए गर्मी,
पागल भी एक सॊच में डूबे, पत्थर मारे दूर भगाए,
बैठे - दौड़े गर्मी आये, विजय हुआ ऐसे हँसता जाए,
चेह - चहाना चिड़िया भूली, कुकुर भी शोर मचाये ऐसे,
बूँद भी नल से टपक न पाए, आग जले फिर पानी आये,
जेब फटी पर गर्म तो है , बच्चो में थोड़ी शर्म तो है,
गाडी बंद में हीटर चलता, मजदूरों का परिवार भी पलता,
रोज़ बने कई शख्स मुसाफिर, अनचाहे ही मृत्यु आजाये,
सिल - सिला ये चलन बन गया, धड़कन चलते चलते ही रुक जाए,
शीत लहर नहीं ये हत्यारन है, इसको भी सजा ऐसा मनोरथ हो,
त्राहि - त्राहि देहधारी पुकारें मृत्यु फल में भी संशोधन हो ,
वरुण पंवार
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