"जाग रहे हैं" Jaag rahe hain

हमने देखी  हैं रातें जागते हुए, कुसूर न तो आँखों  का था न रातों का,
कुसूर तो हमारा था कि हम तय न कर सके कि कौन जाग रहा है ,

लोगो को हम यूँ भी कह देते कि हमे निन्द्रभाव है, 
हर वक्त सुध - बुध खोये बैठे  हैं हम, न जाने मन कहाँ भाग रहा है,   

उस  जिद को न हम छोड़ पाए, न और कोई हासिल कर सका कैसे कह देते कि हम हार गए हैं,
फिर तो मनो एक हवा का झोका आया और हम गिर गए, वाकई लगता है अब कि हम जाग रहे हैं,

वरुण पंवार

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