मैं अपनी इस कविता को IIT के उन छात्र को समर्पित करता हु, जिन्होंने अपने जीवन को त्याग दिया और अपने परिवार की कोई फ़िक्र नहीं की, इस कविता के माध्यम से मैं उन सब छात्रो को एक सन्देश देना चाहता हूँ कि उनके जीवन से मूल्यवान भी कुछ है
में IIT का छात्र हूँ , मुझसे एक अपराध हुआ है,
जीतके पराजित हुआ मैं , एहसास मृत्यु के बाद हुआ है,
मैं भी खड़ा था उस पंक्ति , मुझमे भी तो एक तेज़ था ऐसा,
जीतने का जज्बा था वो , दाखिला मिला IIT जैसा,मेरा मुझमे बाकी क्या था बस परिवार की वो उमीदें थी,
करोडो का था सपना मेरा , महज मामूली सी वो नीदें थी,
सपना क्या साकार हुआ वो , ये तो कहना मुश्किल है,
गणित, विज्ञान का जीवन था ये , कहाँ खाई कहाँ मंजिल है,
ऐसी दौड़ में शामिल था मैं , जिसकी अंत के बाद शुरुआत हुई,
इच्छा मृत्यु जो पायी मैंने , IIT फिरसे आबाद हुई,
आखिरी जो पल थे मेरे , अब मैं वो बतलाता हूँ,
आज भी पापा से डरता हूँ, क्यों कुछ कह नहीं पाता हूँ,
सबके दिल में रहता था मैं , अब जुवान पर भी नाम नहीं,
अब आँखों से गिरता हूँ मैं , नाम हुआ गुमनाम कहीं,
अब आँखों से गिरता हूँ मैं , नाम हुआ गुमनाम कहीं,
मैं वापस आना चाहता हूँ , मैं फिरसे जीना चाहता हूँ,
मेरे भी हों यार हजारो , किसीको अपना कहना चाहता हूँ,
संगीत बने मेरी कमजोरी , नृत्य बने मेरा जूनून,
शरीर बने मेरा फौलादी , जज्बाती हो मेरा खून,
क्या करू अब कैसे औ ऊ , जीवन ज्योति डोर कहाँ,
मृत्यु पे तो बस था मेरा , पुनः जीवन पर जोर कहाँ,
ये मेरा सन्देश है सबको कि मृत्यु आएगी एक बार,
परिस्थिति मैं ढल जाना ही जीवन जीने का आधार,
खुद में हूँ मैं क्या खुद हूँ , मुझसे है मेरा परिवार,
जीवन उनकी देंन है ये , मृत्यु पर किसका अधिकार,
वरुण पंवार
ये मेरा सन्देश है सबको कि मृत्यु आएगी एक बार,
परिस्थिति मैं ढल जाना ही जीवन जीने का आधार,
खुद में हूँ मैं क्या खुद हूँ , मुझसे है मेरा परिवार,
जीवन उनकी देंन है ये , मृत्यु पर किसका अधिकार,
वरुण पंवार
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