जन्नत के उस मसोदे में, मैंने भी चंद फ़साने तरतीब किये हैं,
अब देखना तो ये है कि रास्ता -ऐ-मंज़िल किस हद तक मुझसे रुबारू होता है,
कितने ही किनारे दफ्न हो गए समंदर के उस कहर से,
बस तमन्ना है बारिश की एक बूँद में सिमट जाऊं मैं,
उस सूक्ष्म चेतना से, यकीनन मुझमे एक प्रवाह आएगा,
और मैं कुछ कर-गुजरने को बेबस हो जाऊंगा,
वो लहज़ा तो मेरे पास है नहीं की तुझे एहसास हो,
पर शब्दों के कम्पन से तुझमे एक बदलाव जरुर आएगा,
कोई कहेगा कि ये कविता तो नहीं लगती,
यक़ीनन कविता जरुरी नहीं होती एहसास दिलाने को,
कुछ शब्द कागज पे गुफ्तगू करते हैं, बस पहचान लीजिये आप
वरुण पंवार
अब देखना तो ये है कि रास्ता -ऐ-मंज़िल किस हद तक मुझसे रुबारू होता है,
कितने ही किनारे दफ्न हो गए समंदर के उस कहर से,
बस तमन्ना है बारिश की एक बूँद में सिमट जाऊं मैं,
उस सूक्ष्म चेतना से, यकीनन मुझमे एक प्रवाह आएगा,
और मैं कुछ कर-गुजरने को बेबस हो जाऊंगा,
वो लहज़ा तो मेरे पास है नहीं की तुझे एहसास हो,
पर शब्दों के कम्पन से तुझमे एक बदलाव जरुर आएगा,
कोई कहेगा कि ये कविता तो नहीं लगती,
यक़ीनन कविता जरुरी नहीं होती एहसास दिलाने को,
कुछ शब्द कागज पे गुफ्तगू करते हैं, बस पहचान लीजिये आप
वरुण पंवार