"कुछ अनकहे लफ्ज़" Kuch ankahe lafz

जन्नत के उस मसोदे में, मैंने भी चंद फ़साने तरतीब किये हैं,
अब देखना तो ये है कि रास्ता -ऐ-मंज़िल किस हद तक मुझसे रुबारू होता है,
कितने ही किनारे दफ्न हो गए समंदर के उस कहर से,
बस तमन्ना है बारिश की एक बूँद में सिमट जाऊं मैं, 
उस सूक्ष्म चेतना से, यकीनन मुझमे एक प्रवाह आएगा,
और मैं कुछ कर-गुजरने को बेबस हो जाऊंगा, 
वो लहज़ा तो मेरे पास है नहीं की तुझे एहसास हो,
पर शब्दों के कम्पन से तुझमे एक बदलाव जरुर आएगा, 
कोई कहेगा कि ये कविता तो नहीं लगती,
यक़ीनन कविता जरुरी नहीं होती एहसास दिलाने को,
कुछ शब्द कागज पे गुफ्तगू करते हैं, बस पहचान लीजिये आप

वरुण पंवार

"आदत ये तेरी" Aadat ye teri

प्यार, इम्तेहान, दर्द, वफाई  दिया उसे पर कुछ  ख़ास  न दे सका,
ये तो होना ही था मेरे साथ कि मैं उसे विशवास न दे सका,

मुझसे डरना तो फितरत है उसकी, मुझसे छुपाना भी आदत हो गयी,
निगाहों को बर्ग्लाना ही कोशिस उसकी, मासूम होना एक इबादत हो गयी,

उसपे नफरत की चिंगारी गिरना, कि  एक राज़ का खुलना बाकी है,
चाहता नहीं किसी से गुफ्तुगू करना, पर उससे जाने क्यों हाँ कि है ,

खुद ब खुद दूर होजाऊंगा इसका इंतज़ार वो करेगी ऐसे, 
मैं हो जाऊंगा दूर उससे, उसको दूर कर पाउँगा कैसे,

यादों के बहाने रह जायेंगे, हमसे गिले- शिकवे रह जायेंगे,
मेरी नजरो के बादल लहरा कर तुझे अलविदा कह जायेंगे,

देख लेना तेरी छुपाने की आदत एक ख़ामोशी बन जायेगी, 
महफ़िलो में रह कर भी तुझे तन्हाई सताएगी,

क्यूँ नहीं कह देती की तुझे मुहब्बत है किसी और से,
एक मजनू बच जाएगा, रुसवाई के उस दौर से, 

मेरा इम्तिहान बस मेरी उस मंजिल तक लेजायेगा,
रब गवाही देगा, मेरा जिस्म बा- इज्ज़त-बरी हो जायेगा,

तेरी उस भूल को, कोई सज़ा  का सितम न हो, 
दिल पे मेरे खंजर की कलम न हो ,

तेरी एक आदत कहीं ज़माने का दस्तूर न हो जाए,
सॊच ले कभी कहीं तुझे भी किसीका इंतज़ार न हो जाए,

वो चला जाए फितरत में तेरे उस गुनाह के, 
और तनहा कर दे तुझे बस उस सज़ा के,


वरुण पंवार 

"शीत लहर का कहर" Sheet lehar ka kehar

शीत लहर नहीं ये हत्यारन है, इसको भी सज़ा ऐसा मनोरथ हो,
त्राहि - त्राहि देहधारी पुकारें मृत्यु फल में भी संशोधन हो ,

कीट - पतंगे दफा हुए सब, खग - विहग की भरमार कहाँ,
खिड़की आँखें मूंदें बेठी, शीत लहर की मार यहाँ,

कोहरे की भयानक चादर,  सूर्य देव ईद का चाँद हुआ,
आँगन, सड़क, कचहरी, पथ पर अग्नि देव का आह्वान हुआ,

एक शख्स प्लेटफार्म पर चिल्लाता, पागलों सी वो हरकत उसकी, 
एक गुदगुदाती गर्मी बस वो, बिलकती- सिसकती बिटिया उसकी,

कोई कम्बल ओढ़े नाक दिखाए, कोई पास खड़ा और मरता जाए,
चाहत बस पल भर की नरमी, एक छोर मुझे और मिलजाए गर्मी,

पागल भी एक सॊच में डूबे, पत्थर मारे दूर भगाए, 
बैठे - दौड़े गर्मी आये, विजय हुआ ऐसे हँसता जाए,

चेह - चहाना चिड़िया भूली, कुकुर भी शोर मचाये ऐसे,
बूँद भी नल से टपक न पाए, आग जले फिर पानी आये,
जेब फटी पर गर्म  तो है , बच्चो में थोड़ी शर्म तो है,
गाडी बंद में हीटर चलता, मजदूरों का परिवार भी पलता,

रोज़ बने कई शख्स मुसाफिर, अनचाहे ही मृत्यु आजाये,
सिल - सिला ये चलन बन गया, धड़कन चलते चलते ही रुक जाए,

शीत लहर नहीं ये हत्यारन है, इसको भी सजा ऐसा मनोरथ हो,
त्राहि - त्राहि देहधारी पुकारें मृत्यु फल में भी संशोधन हो ,

 वरुण पंवार