एक अनुभव
किसीके मिलने और बिछुड़ने पर,
हम मिले तुम्हें जाने मुझे तुम मिले,
हम मिले तुम्हें जाने मुझे तुम मिले,
चाहतों के न जाने क्यों चल पड़े सिलसिले,
वफाई थी मेरी या चाहत तुम्हारी थी
जिसपे हमने अपनी हर ख़ुशी निहारी थी ,
हर नज़ारे रंगीन लगने लगे बस प्यार का जादू था,
दिल तुम्हारा जान तुम्हारी न खुद पे काबू था,
कुछ न कहके भी जाने क्यों बेवफाई के दाग मिले,
फिर सोचा कि क्या कुछ किया था जो तुम मुझे मिले,
हर ख़ुशी मेरी तुझे न मिल सकी,
हर गम भी मेरा अब मेरा न हो सका,
जाने क्यों लगता था कि कोई साथ है मेरे,
जबकि मेरा साया भी मेरा न हो सका,
जब साथ रहे वो तो भी तडपते थे मुझे,
जब दूर गए वो तो भी तडपते थे मुझे,
हर पल पे तेरा नाम लिखा जितने भी पल मुझे मिले,
फिर सोचा कि क्या कुछ किया था जो तुम मुझे मिले,
वो मोहब्बत के दिन, मोहब्बत कि रातें कैसी थी,
कहतें हैं हम बस अश्कों कि बरसातें थी,
डूब गए इस कदर हम तुम एक लगने लगे,
दूर होकर भी अक्सर हम पास रहने लगे,
हर आहट तुम्हारी मुझे मजबूर करती थी,
नींद पास आती मेरे तो वो दूर करती थी,
रूठ गया ज़माना भी जब हम दो दिल मिले,
फिर सोचा कि क्या कुछ किया था जो तुम मुझे मिले,
छुपके से तुम्हें बुलाना नज़रों से नज़रें मिलाना,
जो बात अधूरी होती थी उन्हें पलकों से बताना,
मासूम चेहरा प्यारी आँखें मीठे होंठ तुम्हारे,
कहदो सबको बारी - बारी मुझे न पुकारे,
तुम्हारी सादगी के हम हमेशा दीवाने रहेंगे,
हर कदम हर मोड़ पर प्यार है तुमसे कहेंगे,
क्या कहें किस कदर हम तुम्हारी चाहत कि आग में जले,
फिर सोचा कि क्या कुछ किया था जो तुम मुझे मिले,
वो नाज़ुक बदन वो घनी जुल्फें और हँस के शर्माना,
हम जब रूठ जाएँ तुमसे कुछ कहो न फिर घबराना,
तोड़ दिया मुझे छोड़ दिया दिल से आह नहीं रूकती,
चाहत जो मुझे मिली नहीं वो तेरी हो नहीं सकती,
पहले तनहा हम थे मगर इतने तनहा न थे कभी,
अपने भी अपने रहे नहीं और बेगाना कहतें हैं सभी,
टूट गया सपनो का आँगन उसमे न कोई अब फूल खिले,
फिर सोचा कि क्या कुछ किया था जो तुम मुझे मिले,
तुम मुझे मिले
वरुण पंवार
वरुण पंवार
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