"समय का पहिया है, उम्र का सहारा है" Samay Ka Pahiya Hai, Umr Ka Sahara Hai

एक जहाँ की ख्वाईश थी, एक जहाँ बनाना है।
कांटो पे चल-चल कर, राहों को सजाना है।

एक ज़िद थी पाने की, एक गम था खोने का।
जब घर से था निकला, डर था गुम होने का।

परिश्रम की श्याही से, ये रेखाएं ही घिस दी।
आरजुओं की चक्की में, ये उंगलियाँ ही पिस दी।

पहले भी मैं रोया था, फिर आज मैं रोदूंगा।
कुछ आज कमाया है, कुछ कल भी बटोरुंगा।

दिन-रात मैं घूमा जब, निराशा के बादल थे।
दुनियां ये देखी तो, आशा के काजल थे।

एक राग अधूरा सा, फिर पूरा हो पाया।
एक से दो होकर, घर-बार समझ आया।

किलकारी आँगन में, जो गूंजी तो जाना।
बंटता है कैसे, प्यार का पयमाना।

ऊँगली की ऊँचाई, मुस्किल था पकड्पाना।
बरसो की कोशिश अब एक लाठी मुझे पकड़ना।

समय की शाजिस बस, मुरझाये ऐनक भी।
पक गयी दाड़ी तो, बन गए हम लेखक भी।

एक पगड़ी है सर की, संभाल के रखना रे।
इज्ज़त की रोटी को, तुम घर में रखना रे।

एक भार ये मेरा भी,तू उठाले रे बच्चे।
चार काँधे बस, अब जुटाले तू अच्छे।

ना कुछ ये मेरा था, न ये कुछ तेरा है।
समय का पहिया है, उम्र का सहारा है।


वरुण पंवार

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