चार धाम वो देव भूमि के स्वर्ग सिद्धि पथ कहलाते
जन जन है अभिलाशी ऐसा, धन्य -धन्य हैं दर्शन जो पाते।
सर-सर पवन भी गीत लगाता, डाली-डाली नाच उठे तब,
छल-छल नदी भी शोर मचाती, ऐसा लगे कि नाद बजे तब।
बांज-बुरांस और चीड़-देवदार बीच बसा वो गाँव सुहाना,
बादल चुम्बन करे धरा पर, इंद्र धनुष का बना बिछोना,
पगडण्डी ही एक सड़क अनोखी, पैदल दौड़े सबकी गाडी,
घर-आँगन और खेत सजाती धन्य-धन्य है पहाड़ी नारी।
कण-कण में ईश्वर है बसता, हृदय-हृदय पावन-पावन,
भावुकता हर प्राण-प्राण में, हर घर है यहाँ वृंदावन।
ढोल, दमो, तुरी स्वागत करते, मेलो का रंगीन मिजाज़,
डोली-डोली नंदा बसती, गाँव-गाँव में ईश्वरीय रिवाज।
मिटटी यहाँ की सोना उपजे, रक्त-रक्त बलिदानी है,
उत्तराखंड ही नहीं नाम यहाँ का, ये कई वीरो कि कहानी है।
क्या से क्या अब घटित हुआ जैसे श्रापित उत्तराखंड हुआ,
रूद्र रूप अवतरित हुआ और उत्तराखंड खंड-मंड हुआ।
डामो की चोटों का श्रय, हर घाव-घाव दिख जाएगा,
बिजली कि तारो का फंदा, उत्तरांचल फांसी चढ़ जाएगा।
क़त्ल पहाड़ो का कर डाला, रक्त नदियों का जमा दिया,
देवजन भाड़े के पर्वत खोजें, विकास है सर्वोच्य ये जता दिया।
गाँव-गाँव में बाघ लगा है, जंगल-जंगल आग,
खेत-खेत भवन उपजे, अब क्या करना है साग?
देव संस्कृति लुप्त हुई अब, प्राण प्रतिष्टा बस दूरदर्शन,
बोली नरक सिधार गई,उसे अंग्रेजी देती है तर्पण।
विकास है या ये विनाश है, देवताओ को थोड़ी सी आस है,
करलो ध्यान, है ये अभियान कि '"उत्तराखंड ख़ास है "
वरुण पंवार
जन जन है अभिलाशी ऐसा, धन्य -धन्य हैं दर्शन जो पाते।
सर-सर पवन भी गीत लगाता, डाली-डाली नाच उठे तब,
छल-छल नदी भी शोर मचाती, ऐसा लगे कि नाद बजे तब।
बांज-बुरांस और चीड़-देवदार बीच बसा वो गाँव सुहाना,
बादल चुम्बन करे धरा पर, इंद्र धनुष का बना बिछोना,
पगडण्डी ही एक सड़क अनोखी, पैदल दौड़े सबकी गाडी,
घर-आँगन और खेत सजाती धन्य-धन्य है पहाड़ी नारी।
कण-कण में ईश्वर है बसता, हृदय-हृदय पावन-पावन,
भावुकता हर प्राण-प्राण में, हर घर है यहाँ वृंदावन।
ढोल, दमो, तुरी स्वागत करते, मेलो का रंगीन मिजाज़,
डोली-डोली नंदा बसती, गाँव-गाँव में ईश्वरीय रिवाज।
मिटटी यहाँ की सोना उपजे, रक्त-रक्त बलिदानी है,
उत्तराखंड ही नहीं नाम यहाँ का, ये कई वीरो कि कहानी है।
क्या से क्या अब घटित हुआ जैसे श्रापित उत्तराखंड हुआ,
रूद्र रूप अवतरित हुआ और उत्तराखंड खंड-मंड हुआ।
डामो की चोटों का श्रय, हर घाव-घाव दिख जाएगा,
बिजली कि तारो का फंदा, उत्तरांचल फांसी चढ़ जाएगा।
क़त्ल पहाड़ो का कर डाला, रक्त नदियों का जमा दिया,
देवजन भाड़े के पर्वत खोजें, विकास है सर्वोच्य ये जता दिया।
गाँव-गाँव में बाघ लगा है, जंगल-जंगल आग,
खेत-खेत भवन उपजे, अब क्या करना है साग?
देव संस्कृति लुप्त हुई अब, प्राण प्रतिष्टा बस दूरदर्शन,
बोली नरक सिधार गई,उसे अंग्रेजी देती है तर्पण।
विकास है या ये विनाश है, देवताओ को थोड़ी सी आस है,
करलो ध्यान, है ये अभियान कि '"उत्तराखंड ख़ास है "
वरुण पंवार