कवी की कल्पना एक नया जहाँन की तलाश होती है,
बनके भंवर वो फूलों की महक में भी खो जाता है,
या बनके सपना कभी भी किसीका हो जाता है,
उसके जहाँ का प्रमाण बस उसकी मौजूदगी है,
लहू में भी घुल कर रगों में तूफ़ान भर देता है,
बनके फ़रिश्ता भगवान् को पत्थर कर देता है,
कैसे मौसम से रूबरू होता है,कि हँसते हँसते ही रो देता है,
एक ही कहानी लिखते कहीं कई कलम रुक जाती हैं,
और एक अक्षर पड़कर कई निगाहें झुक जाती हैं,
खुद में खुद को उतार कर एक शाजिश करता है ,
बदनाम होकर भी और गुंजाइश रखता है,
हर स्वाद को चख लेने की ही जुस्तजू में रहता है,
लिख कर डंस लेता है जुबान से कुछ नहीं कहता है,
ख़्वाबों में भी ख़्वाबों का कारवां चलता है,
समंदर की लहरों पर भी एक आशियाना पलता है,
दीदार रोज़ करता है अपने हमसफ़र का वो,
कुर्बानी भी एक आदात ,दिलो-जिगर का वो,
पागल है वो, जख्मो को देखे तो घायल है वो,
सूनी आँखों का काजल, पैरों की पायल है वो,
सच कहूँ तो फिर एक आतंकी बादल है वो,
काट कर हतेली नाम भी लिखता है वो,
सुने ख़्वाबों में सपनो के रंग भरता है वो,
एक कविता उसकी दीवानी, तो वो आशिक उसका,
खुश्क दरिया में रवानी, तो वो हासिल उसका,
कोई देह ऐसा नहीं जिसकी कोई छवि नहीं,
और कोई संसार ढूँढो ऐसा जहाँ कोई कवी नहीं,
ढूँढ लो कहीं भी जहाँ भी रब रचता है,
रब से पहले भी एक सोच कि कवी बसता है,