"जुगनू हूँ मैं पल भर का"Jugnu hun main pal bhar ka

वो नज़ारा पुराना था वो बहाना पुराना था,
गर जो बात बिगड़ी है तो वो इरादा पुराना था,
बदल दी वो दुनिया बदल दी वो फितरत,
बना दो मुझे फिर नया जो शख्स पुराना था,

कोई अनजान होता ही है, कोई अनजान बन जाता है,
कोई, कोई और ही होता है, और फिर अपना बन जाता है,
तुझे पता है ये शानो शोकत तेरी नहीं है फिर भी,
कोई जहाँ में घुल जाता है और कोई जहाँ भूल जाता है,

जुगनू हूँ मैं पल भर का, रहने दो मुझे शामियाने में,
डरता हूँ जिन्दगी से पर रहता हूँ आशियाने में,
कैसा सफ़र तय कर रहा हूँ इस पञ्च तत्व में रहकर,
आत्मा तड़प जाती है वो इज्ज़त कमाने में, 

वरुण पंवार

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