"उठो वीर तुम खड़ग उठाओ" Utho veer tum khadag uthao

शामिल हुआ जब मैं तो वो एक भीड़ थी,
देखते-देखते ही वो सारे मेरे अपने हो गए, 

शोर फिर चीख और सन्नाटे में बदल गया,
एक हाथ मेरे हाथ में देकर एक शख्स खो गया,

दशा बयां करूँ या फिर नैन भिगोऊँ,
धड हिलाऊँ या फिर सर उठाऊँ,

पैर नहीं बस उसका हाथ ही था,
जाने से पहले वो मेरे साथ ही था, 

दहशत जीवन का एक पहलु ऐसा,
मृत्यु निश्चित तो फिर डरना कैसा,

मन-मौन यूँ कब तक मौन रहेगा,
देश है मेरा कब हर शख्स कहेगा,

दफ़न किया जो वो शर्मा था, जल गया वो खान था भाई,
हिन्दू , मुस्लिन, सिख, इसाई  देह समेट रहे हैं भाई,

देख कसाई पंडित बनकर मंदिर लूट रहा है वो, 
देख सियासी मन्त्र पड़कर भीड़ जुटा रहा है वो, 

बंद करो ये देख दिखावा, भीड़ भी तमाशीन हुई,
भेड़-चाल का जन्तर पहने, मानवता मशीन हुई,

उठो वीर तुम खड़ग उठाओ ऐसी एक हुंकार भरो, 
अमर बनो एक पुष्प खिलाओ, गद्दारों का संहार करो, 

वरुण पंवार 

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