"डर लगता है" Darr lagta hai

दुश्मनों के बीच लिए जामों से नहीं ग़मों  के बीच पिए जामों से डर लगता है,
और मुहब्बत करना एक गुनाह है इस ज़माने में, महज उसके अंजामो से डर लगता है,

कोई हमें याद करे न करे मगर, उसकी हर बार की दुआओं  से डर लगता है,
बिना सज़ा के ही कैसे कैद हो जाते हैं दो दिल उन सज़ाओं से डर लगता है,

रोक नहीं पाए खुद को मुजरिम बनाने से, अब हर इन्साफ से डर लगता है,
और कई बेकसूर आज भी मुहब्बत के अंजाम से अनजान हैं, उन इंसान से डर लगता है,

कॉलेज के प्रागंण में उसकी गैरमौजूदगी से नहीं, अपनी ही तन्हाई से डर लगता है,
कहीं मिल न जाए फिर से किसी मोड़ पर वो अब अपनी ही वफाई से डर लगता है,

दुनिया के दिखावे से नहीं, आशिकी के उन नज़ारों से डर लगता है,
बेठे रहते थे उन दीवारों के सहारे हम अब उन दीवारों से ही डर लगता है,

सर्दियों की रात में छत पर ठिठुरते हुई फ़ोन पर बात नहीं, बात न होने से डर लगता है,
और अब तो आलम ये है कि गर्मियों की रातो में उस छत पर जाने से ही डर  लगता है,

उसकी कक्षा की ओर दौड़ से नहीं, उसकी गली के उस मोड़ से डर लगता है,
अब रास्ता बदल बदल कर चलते हैं हम, उसकी तरफ जाने वाली हर रोड से डर लगता है,

वरुण पंवार 

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