पिताजी कहते हैं, बेटा तुझे उस मुकाम तक पहुंचना है,
मैंने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कह दिया जी पिताजी,
मैं बड़ा होता गया, मेरी जरूरते बढती गई, मेरा लक्ष्य भी बड़ा होता गया,
फिर जहन में एक आवाज़ गूंजती है, बेटा तुझे उस मुकाम तक पहुंचना है,
मैंने खुद को इस काबिल बनाया की, मैं सबको अपना कहने लगा,
सबका दर्द समझने लगा, फिर एक आवाज़ गूंजती है, बेटा तुझे उस मुकाम तक पहुंचना है,
मेरी हर एक पंक्ति में शब्दों का इजाफा होने लगा, क्या पता मेरा मुकाम कहाँ तक है,
जिंदगी जहाँ तक है मेरा मुकाम वहां तक है, बस मुकाम ढूँढ़ते इतना इंतज़ार हो गया है,
कि उस शब्द का एक हिस्सा मेरे जीवन से जुड़ गया, मैं जान गया मेरा मुकाम कहाँ तक है,
पर सच्चाई के सहारे मुझे उस बुलंदी को छूना है, कि मैं भी फक्र से कह सकूँ, "बेटा तुझे उस मुकाम तक पहुंचना है"
वरुण पंवार
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