इस कविता के माध्यम से मैं एक सन्देश देना चाहता हूँ, कि स्नेह एक ऐसी भाषा
है, जो पृथ्वी रूपी संसार में हर प्राणी को जीने का आधार प्रदान करती
है और प्रेम भाव से किसी को भी जीता जा सकता है, ये कविता एक गिलहरी(जावा)
और मनुष्य के प्रेम प्रसंग का वर्णन करती है,
गुमशुदा गुमनाम हुई मैं, बिछुड़ गयी संसार से अपने,
कुछ दिन पहले जन्मी थी मैं, आँखें न खुल पाई तब तक,
भूख के मारे बिलक रही थी, चीख-चीख कर बता रही,
एक स्पर्श ने हिला दिया तब, आस भी उठकर खड़ी हुई,
कौन था मेरा वो हितकारी, सुबह शाम मुझको सहलाये,
उसने आगे हाथ बढाया, भयभीत हुई मैं भाग खड़ी,
उसने मुझको जकड लिया, स्पर्श ये कोई नया नहीं,
जावा-जावा सुनती थी, आवाज़ भी उसकी जान गयी,
उसका कन्धा राज सिंहांसन, भ्रमण मैं चारो ओर करूँ,
उसका मुझसे रिश्ता ऐसा, अपनों सी वो चिंता करता,
कुछ समझ हुई तो, छोड़ा उसने, गिल्लों की भरमार जहाँ,
रोज़ सुबह मैं मिलने आती, फिर गिल्लों में मैं कहीं गुम हो जाती,
एक रोज़ मैं उससे मिलने आई, मैंने चीख-चीख आवाज़ लगाई,
इतना कि कुछ समझ मैं पाती, एक बिराल ने पंजा मारा,
डंडा लेके पीछे दौड़ा, बिराल प्राण बचाती है,
विधी-विधान का पहिया घूमे, धर्म कर्म सब करते हैं,
मैं महज़ उदहारण हूँ, स्नेह-भाव से मुझे जीत लिया,
चींटी क्या है, हाथी क्या है, सारे प्रेम के रोगी हैं,
वरुण पंवार
"जावा की अनोखी प्रेम कहानी"
गुमशुदा गुमनाम हुई मैं, बिछुड़ गयी संसार से अपने,
मैं गिल्लु परजाति की हूँ, पहचान लिया तो होगा सबने,
कुछ दिन पहले जन्मी थी मैं, आँखें न खुल पाई तब तक,
कैसे, कब और कहाँ गिरी मैं, ये भी जान न पाई अब तक,
भूख के मारे बिलक रही थी, चीख-चीख कर बता रही,
कोई समझ न पाया मुझको, मेरे साथ ये खता हुई,
एक स्पर्श ने हिला दिया तब, आस भी उठकर खड़ी हुई,
दाना-पानी नसीब हुआ और उसकी छाँव में बड़ी हुई,
कौन था मेरा वो हितकारी, सुबह शाम मुझको सहलाये,
आँखें खुली तो समझ में आई, ये मानव जाति का कहलाये,
उसने आगे हाथ बढाया, भयभीत हुई मैं भाग खड़ी,
फुदक-फुदक कर दुपक गयी, चादर और पर्दे पे चढ़ी,
उसने मुझको जकड लिया, स्पर्श ये कोई नया नहीं,
निर्भीक हुई एहसास हुआ पर ऐसी-कैसी सजा हुई,
जावा-जावा सुनती थी, आवाज़ भी उसकी जान गयी,
नाम दिया जब जावा उसने, खुद को भी पहचान गयी,
उसका कन्धा राज सिंहांसन, भ्रमण मैं चारो ओर करूँ,
भूख लगे तो उधम मचाऊं, चीख-चीख कर शोर करूँ,
उसका मुझसे रिश्ता ऐसा, अपनों सी वो चिंता करता,
फटकार लगाता, दूर भगाता, ऐसे मुझको डांटा करता,
कुछ समझ हुई तो, छोड़ा उसने, गिल्लों की भरमार जहाँ,
सब मेरे जैसे दिखते थे वो, अपरिचित संसार यहाँ,
रोज़ सुबह मैं मिलने आती, फिर गिल्लों में मैं कहीं गुम हो जाती,
आवाज़ कभी जब सुनती उसकी, दीवानी मैं भागी आती,
एक रोज़ मैं उससे मिलने आई, मैंने चीख-चीख आवाज़ लगाई,
दूध भरा चमचा फैंका उसने, जोर से एक फटकार लगाई,
इतना कि कुछ समझ मैं पाती, एक बिराल ने पंजा मारा,
प्राण-पखेरू मेरे देखें उसको, फूट-फूट रोता बेचारा,
डंडा लेके पीछे दौड़ा, बिराल प्राण बचाती है,
देह जो मेरा बाकी था, वो बच्चो में बाँट आती है,
विधी-विधान का पहिया घूमे, धर्म कर्म सब करते हैं,
ढोंग रचाके छलते हैं, स्नेह भाव से क्यूँ डरते हैं,
मैं महज़ उदहारण हूँ, स्नेह-भाव से मुझे जीत लिया,
जो मानव मेरा प्रीत बना, उसने भी ये सीख लिया,
चींटी क्या है, हाथी क्या है, सारे प्रेम के रोगी हैं,
देह मिला है सबको भिन्न भिन्न, जन्म जन्म के भोगी हैं,
वरुण पंवार