"नारी की करुण पुकार " Naari ke karun pukaar

मेरी आवाज़ नहीं वो चीक सुनो, जो तुझे तेरी आबरू से आती है,
बचालो भाइयो इस दहकती दिल्ली को हर वो आवाज तुझे बुलाती है,

दिल्ली बदनाम बस्ती  में  बदल दी, दरिंदगी  की दिशा में चल दी,
सत्ता धारी  कमाल कर दिया, दशा बदल दी दिशा बदल दी, 

कैसे वो खुन्कार दरिन्दे, खोफ जमाए बेठे हैं, 
माँ, बहन, बेटी और बहु सारे शम्शान में लेटे  हैं , 

जागती ये दिल्ली क्यों भागती चीखें सुनाती, 
आवाज़ नहीं क्यों गुनगुनाती, देह्सह्तो की कहानी बताती, 

देख नज़ारा आम हो गया, मदिरा पान का जाम हो गया,
घर, मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद, क्यूँ  हर शख्स बदनाम हो गया,

चालक क्यों चालाकी करता, इंसानियत से क्यों नहीं डरता,
हृदय  कफ़न लपेटे है, न स्त्रीरूप से मुहब्बत करता, 

दुर्गा, काली, शेरा वाली, जिसकी ये अवतारी हैं, 
भाई, पापा, चाचा, दादा सबकी ही तो प्यारी हैं, 

गुनाह किया क्या इसने कोई, स्वतंत्रता का जशन मनाती, 
स्त्री होना ही क्या गुनाह हो गया, सुकून से क्यों जी नहीं पाती, 

दर्द ये कैसे सहन  हो गया, मानवता का दहन हो गया,
कैसे कोई हैवानियत करता, पुरुष जाती का ज़हन  सो गया, 

राजनेताओ का ये खेल-खिलौना संसद में  फिर खर्राटे  लेना, 
आबरू यूँ लुटती जाए, बेफिझुल है छोड़ो रहने दो न,

चीखती एक बहन है मेरी, संसद भी शम्शान हुआ, 
दिल्ली पुलिस भी करती क्या, दरिंदो का सम्मान हुआ, 

चलो आवाज एक बुलंद करो सब, देश के पालनहार बनो, 
राम, कृष्ण अवतारी बनकर, स्त्रियों का कल्याण करो,

वरुण पंवार