पाटना पे खड़ी के चिन्ह लगाना अब मुश्किल हुआ,
laptop, mobile, touchpad मैं भी full skill हुआ,आठाना, चाराना की वो गोल मिठाई अच्छी थी,
घुटनों के बल चलता था मैं कोई पकड़ तो लेता मुझको,
रफ़्तार की ये न गाडी होती, रास्ता न कोई देता मुझको,
वक्त बताएगा क्या होगा ये भी सोचा करता था,
वक्त हुआ है क्या इस वक्त इसकी भी नहीं फुरसत मुझको,
मैं बालक था बड़ा हुआ क्या दो चक्षु दो हस्त सुहाने,
ऐनक चक्षु ताड्ती देखे, keypad से क्या लिखूं बहाने,
मेरे चुन - मुन मुझे सिखाते playstation का ज्ञान हुआ,
बालक तो बन सकता हूँ मैं उद्योग- भवन को छोड़ू कहाँ मैं,
खाया क्या है ? क्या खाओगे ?, सुनते हो क्या !!!! मैं सुन नहीं पता हूँ,
meeting , cheating , order , heating MOM बनके रह जाता हूँ,
Denis, Newton पदते- पढ़ते महज कहानी सी बन जाती है,
चिंतन - दबाव की स्थिति ऐसी, सुनिस्चित सो नहीं पता हूँ,
दायरा कितना था वो पहले बिन उपाधि राज किया,
उपाधि देकर पूछें मुझसे क्या तुने भई आज किया ?
मेरे मालिक मेरे बच्चे ये हि तो मेरे खुदा हुए,
एक खुदा ने रोटी बक्शी दूजे खुदा ने साथ दिया,
अनुयायी हैं विरोधी भी , सबकी सुननी पड़ती है ,
बीच भंवर में फसा हुआ हूँ , मेरी सेना मुझसे लडती है,
व्यर्थ कहूँ या लडूं मैं खुद से इससे मेरा लाभ नहीं,
प्यार से सबको समझाता हूँ, और सेना प्यार मुझे करती है,
वरुण पंवार